*|♥|*श्री दुर्गा चालीसा*|♥|*
नमो नमो दुर्गे सुख करनी |
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ||
निराकार है ज्योति तुम्हारी |
तिहूँ लोक फैली उजयारी ||
शशि ललाट मुख महाविशाला |
नेत्र लाल भृकुटी विकराला ||
रूप मातु को अधिक सुहावे |
दरस करत जन अति सुख पावे ||
तुम संसार शक्ति लाया किना |
पालन हेतु अन्ना धान दिना ||
अन्नपूर्ण हुई जग पाला |
तुम्ही आदी सुंदरी बाला ||
प्रलय काला सब नाशन हरी |
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ||
शिव योगी तुम्हरे गुना गावें |
ब्रह्म विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ||
रूप सरस्वती को तुम धारा |
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिना उबारा ||
धर्यो रूप नरसिम्हा को अम्बा |
प्रगत भयं फार कर खम्बा ||
रक्षा करी प्रहलाद बचायो |
हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो ||
लक्ष्मी रूप धरो जग महीन |
श्री नारायण अंगा समिहहीं ||
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ||
निराकार है ज्योति तुम्हारी |
तिहूँ लोक फैली उजयारी ||
शशि ललाट मुख महाविशाला |
नेत्र लाल भृकुटी विकराला ||
रूप मातु को अधिक सुहावे |
दरस करत जन अति सुख पावे ||
तुम संसार शक्ति लाया किना |
पालन हेतु अन्ना धान दिना ||
अन्नपूर्ण हुई जग पाला |
तुम्ही आदी सुंदरी बाला ||
प्रलय काला सब नाशन हरी |
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ||
शिव योगी तुम्हरे गुना गावें |
ब्रह्म विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ||
रूप सरस्वती को तुम धारा |
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिना उबारा ||
धर्यो रूप नरसिम्हा को अम्बा |
प्रगत भयं फार कर खम्बा ||
रक्षा करी प्रहलाद बचायो |
हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो ||
लक्ष्मी रूप धरो जग महीन |
श्री नारायण अंगा समिहहीं ||
क्षीर सिन्धु में करत विलासा |
दया सिन्धु दीजे मन असा ||
दया सिन्धु दीजे मन असा ||
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी |
महिमा अमिट न जेट बखानी ||
मातंगी धूमावती माता |
भुवनेश्वरी बागला सुखदाता ||
श्री भैरव लारा जोग तरनी |
छिनना भला भावः दुःख निवारानी ||
केहरी वहां सोह भवानी |
लंगूर वीर चालत अगवानी ||
कर में खप्पर खडग विराजे |
जाको देख कल दान भजे ||
सोहे अस्त्र और त्रिशूला |
जसे उठता शत्रु हिय शूला ||
नगरकोट में तुम्ही विराजत |
तिहूँ लोक में डंका बाजत ||
शुम्भु निशुम्भु दनुज तुम मारे |
रक्त-बीजा शंखन संहारे ||
महिषासुर नृप अति अभिमानी |
जेहि अघा भर माहि अकुलानी ||
रूप कराल कलिका धारा |
सेन सहित तुम तिन संहार ||
पण गर्हा संतान पर जब जब |
भाई सहाय मातु तुम तब तब ||
अमर्पुनी अरु बसवा लोक |
तवा महिरना सब रहें असोका ||
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी |
तुम्हें सदा पूजें नर नारी ||
प्रेम भक्ति से जो यश गावे |
दुःख-दरिद्र निकट नहीं आवे ||
ध्यावे तुम्हें जो नर मन ली |
जनम-मरण ताको छुटी जाई ||
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी |
जोग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ||
महिमा अमिट न जेट बखानी ||
मातंगी धूमावती माता |
भुवनेश्वरी बागला सुखदाता ||
श्री भैरव लारा जोग तरनी |
छिनना भला भावः दुःख निवारानी ||
केहरी वहां सोह भवानी |
लंगूर वीर चालत अगवानी ||
कर में खप्पर खडग विराजे |
जाको देख कल दान भजे ||
सोहे अस्त्र और त्रिशूला |
जसे उठता शत्रु हिय शूला ||
नगरकोट में तुम्ही विराजत |
तिहूँ लोक में डंका बाजत ||
शुम्भु निशुम्भु दनुज तुम मारे |
रक्त-बीजा शंखन संहारे ||
महिषासुर नृप अति अभिमानी |
जेहि अघा भर माहि अकुलानी ||
रूप कराल कलिका धारा |
सेन सहित तुम तिन संहार ||
पण गर्हा संतान पर जब जब |
भाई सहाय मातु तुम तब तब ||
अमर्पुनी अरु बसवा लोक |
तवा महिरना सब रहें असोका ||
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी |
तुम्हें सदा पूजें नर नारी ||
प्रेम भक्ति से जो यश गावे |
दुःख-दरिद्र निकट नहीं आवे ||
ध्यावे तुम्हें जो नर मन ली |
जनम-मरण ताको छुटी जाई ||
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी |
जोग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ||
शंकर आचारज टाप कीन्हों |
काम क्रोध जीत सब लीन्हों ||
निसिदिन ध्यान धरो शंकर को |
कहू कल नहिनी सुमिरो तुम को ||
शक्ति रूप को मरण न पायो |
शक्ति गयी तब मन पछितायो ||
शरणागत हुई कीर्ति बखानी |
जय जय जय जगदम्ब भवानी ||
भाई प्रसन्ना आदि जगदम्बा |
दाई शक्ति नहीं कीं विलम्बा ||
मोकों मातु कष्ट अति घेरो |
तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो ||
आशा तृष्णा निपट सातवें |
मोह मदादिक सब बिन्सवें ||
शत्रु नाश कीजे महारानी |
सुमिरों एकचित तुम्हें भवानी ||
करो कृपा हे मातु दयाला |
रिद्धि सिद्धि दे करहु निहाला ||
जब लगी जियूं दया फल पाऊँ |
तुम्हरो यश में सदा सुनाऊँ ||
दुर्गा चालीसा जो गावे |
सब सुख भोग परमपद पावे ||
काम क्रोध जीत सब लीन्हों ||
निसिदिन ध्यान धरो शंकर को |
कहू कल नहिनी सुमिरो तुम को ||
शक्ति रूप को मरण न पायो |
शक्ति गयी तब मन पछितायो ||
शरणागत हुई कीर्ति बखानी |
जय जय जय जगदम्ब भवानी ||
भाई प्रसन्ना आदि जगदम्बा |
दाई शक्ति नहीं कीं विलम्बा ||
मोकों मातु कष्ट अति घेरो |
तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो ||
आशा तृष्णा निपट सातवें |
मोह मदादिक सब बिन्सवें ||
शत्रु नाश कीजे महारानी |
सुमिरों एकचित तुम्हें भवानी ||
करो कृपा हे मातु दयाला |
रिद्धि सिद्धि दे करहु निहाला ||
जब लगी जियूं दया फल पाऊँ |
तुम्हरो यश में सदा सुनाऊँ ||
दुर्गा चालीसा जो गावे |
सब सुख भोग परमपद पावे ||
Jai Mata Di....
ReplyDelete