Saturday, October 27, 2012

Shri Durga Chalisa(*|♥|*श्री दुर्गा चालीसा*|♥|*)

*|♥|*श्री दुर्गा चालीसा*|♥|*

                                    


नमो नमो दुर्गे सुख करनी | 
 नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ||                    
 निराकार है ज्योति तुम्हारी |  
तिहूँ लोक फैली उजयारी ||                  
   शशि ललाट मुख महाविशाला | 
 नेत्र लाल भृकुटी विकराला ||        
  रूप मातु को अधिक सुहावे |  
दरस करत जन अति सुख पावे ||        
 तुम संसार शक्ति लाया किना |
 पालन हेतु अन्ना धान दिना ||  
अन्नपूर्ण हुई जग पाला
 तुम्ही आदी सुंदरी बाला ||               
       प्रलय काला सब नाशन हरी |  
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ||      
      शिव योगी तुम्हरे गुना गावें
 ब्रह्म विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ||         
    रूप सरस्वती को तुम धारा |  
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिना उबारा ||    
      धर्यो रूप नरसिम्हा को अम्बा | 
 प्रगत भयं फार कर खम्बा  ||      
    रक्षा करी प्रहलाद बचायो
 हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो ||        
    लक्ष्मी रूप धरो जग महीन |  
श्री नारायण अंगा समिहहीं ||
क्षीर सिन्धु में करत विलासा |  
दया सिन्धु दीजे मन असा ||
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी |  
महिमा अमिट न जेट बखानी ||   
    मातंगी धूमावती माता |  
भुवनेश्वरी बागला सुखदाता ||                
     श्री भैरव लारा जोग तरनी
 छिनना भला भावः दुःख निवारानी ||  
 केहरी वहां सोह भवानी |  
लंगूर वीर चालत अगवानी ||                  
    कर में खप्पर खडग विराजे
 जाको देख कल दान भजे ||         
       सोहे अस्त्र और त्रिशूला |  
जसे उठता शत्रु हिय शूला ||         
      नगरकोट में तुम्ही विराजत
 तिहूँ लोक में डंका बाजत ||     
        शुम्भु निशुम्भु दनुज तुम मारे
 रक्त-बीजा शंखन संहारे ||    
   महिषासुर नृप अति अभिमानी |  
जेहि अघा भर माहि अकुलानी ||  
 रूप कराल कलिका धारा |  
सेन सहित तुम तिन संहार ||          
        पण गर्हा संतान पर जब जब
 भाई सहाय मातु तुम तब तब ||   
अमर्पुनी अरु बसवा लोक | 
 तवा महिरना सब रहें असोका || 
        ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी | 
तुम्हें सदा पूजें नर नारी ||               
   प्रेम भक्ति से जो यश गावे |  
दुःख-दरिद्र निकट नहीं आवे ||       
      ध्यावे तुम्हें जो नर मन ली |  
जनम-मरण ताको छुटी जाई ||      
   जोगी सुर मुनि कहत पुकारी | 
 जोग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ||
शंकर आचारज टाप कीन्हों | 
 काम क्रोध जीत सब लीन्हों ||     
निसिदिन ध्यान धरो शंकर को |  
कहू कल नहिनी सुमिरो तुम को || 
 शक्ति रूप को मरण न पायो
 शक्ति गयी तब मन पछितायो || 
 शरणागत हुई कीर्ति बखानी |  
जय जय जय जगदम्ब भवानी ||  
    भाई प्रसन्ना आदि जगदम्बा | 
 दाई शक्ति नहीं कीं विलम्बा ||    
    मोकों मातु कष्ट अति घेरो
 तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो ||       
     आशा तृष्णा निपट सातवें
 मोह मदादिक सब बिन्सवें ||    
            शत्रु नाश कीजे महारानी |  
सुमिरों एकचित तुम्हें भवानी ||       
       करो कृपा हे मातु दयाला |
 रिद्धि सिद्धि दे करहु निहाला ||       
           जब लगी जियूं दया फल पाऊँ |  
तुम्हरो यश में सदा सुनाऊँ  ||        
 दुर्गा चालीसा जो गावे |  
सब सुख भोग परमपद पावे ||



                                     


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