Friday, October 26, 2012

Hanuman Chalisa (हनुमान चालीसा )

          
                       |♥|हनुमान   चालीसा |♥|
 श्रीगुरु चरण् सरोजरज, निजमनमुकुर सुधार ।
 बरणौ रघुबर बिमल यश, जो दायक फलचार ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार ।
बल बुद्धिविद्या देहु मोहिं
, हरहु कलेश विकार ॥


 जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
     जै कपीस तिहुँलोक उजागर ॥
 
 रामदूत अतुलित बलधामा ।
      अंजनि
-पुत्र पवन-सुत नामा ॥ 
 महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
      कुमति निवार सुमति के संगी ॥
 
 कंचन बरण बिराज सुबेशा ।
      कानन कुंडल कुंचित केशा ॥
 हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
      काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
 शंकर-सुवन केशरी-नन्दन ।
      तेज प्रताप महा जग
-वंदन ॥ 
 विद्यावान गुणी अति चातुर ।
      राम काज करिबे को आतुर ॥
 
 प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
      रामलषण सीता मन बसिया ॥
 
 सूक्ष्म रूपधरि सियहिं दिखावा ।
      विकट रूप धरि लंक जरावा ॥
 
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
      रामचन्द्र के काज सँवारे ॥
 
 लाय सजीवन लखन जियाये ।
      श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
 
 रघुपति कीन्ही बहुत बडाई ।
      तुम मम प्रिय भरतहिसम भाई ॥
 
 सहस बदन तुम्हरो यश गावैं ।
      अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
 
 सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा ।
      नारद शारद सहित अहीशा ॥
 
 यम कुबेर दिगपाल जहाँते ।
      कवि कोविद कहि सकैं कहाँते ॥
 
 तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
      राम  मिलाय राजपद दीन्हा ॥
 
 तुम्हरो मंत्र विभीषण माना ।
      लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥
 
 युग सहस्र योजन पर भानू ।
      लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
 
 प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
      जलधि लाँधि गये अचरजनाहीं ॥
 
 दुर्गम काज जगत के जेते ।
      सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
 
राम दुआरे तुम रखवारे ।
      होत न आज्ञा बिन पैसारे ॥
 
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
      तुम रक्षक काहू को डरना ॥
 
आपन तेज सम्हारो आपै ।
      तीनों लोक हाँकते काँपै ॥
 
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
      महाबीर जब नाम सुनावै ॥
 
नाशौ रोग हरै सब पीरा ।
      जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥
  
संकट से हनुमान छुडावै ।
      मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
      तिनके काज सकल तुम साजा ॥
 
और मनोरथ जो कोइ लावै ।
      सोइ अमित जीवन फल पावै ॥
 
चारों युग परताप तुम्हारा ।
      है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
 
साधु संत के तुम रखवारे ।
      असुर निकंदन राम दुलारे ॥
  
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता ।
      अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
      सदा रहो रघुपति के दासा ॥
 
तुम्हरे भजन रामको पावै ।
      जन्म जन्म के दुख बिसरावै ॥
 
अन्त काल रघुपति पुर जाई ।
      जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
 
और देवता चित्त न धरई ।
      हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥
 
संकट हरै मिटै सब पीरा ।
     जो सुमिरै हनुमत बल बीरा ॥
 
जै जै जै हनुमान गोसाई ।
     कृपा करहु गुरुदेव की नाई ॥
 
जोह शत बार पाठ कर जोई ।
      छुटहि बन्दि महासुख होई ॥
 
जो यह पढै हनुमान चालीसा ।
      होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
 
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
      कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥
 

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
 रामलषन सीता सहित
, हृदय बसहु सुरभूप ॥ 

 

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